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उत्तर प्रदेश में बस वालों की मनमानी

कोरोना को रोकने के लिये सरकार-शासन तामाम प्रयास कर रही है।  पर वहीं प्रशासन के दबदबे के कारण कोरोना को रोकने के लिये जो भी प्रयास किये जा रहे है। वे सब व्यर्थ साबित हो रहे है। बात करते है उत्तर प्रदेश की जहां पर लाँकडाउन सरकार ने लगा रखा है। पर वहीं प्रशासन की मिली भगत से आज भी प्राइवेट बस वाले और कार वाले जमकर कोरोना गाइड लाइन की धज्जियां उड़ा रहे है।

उत्तर प्रदेश परिवहन के बस चालक, प्राइवेट बस वालों से सांठ-गांठ कर प्राइवेट बसों में अपनी सवारियां को भेज देते है और कहते है कि परिवहन की बस अभी नहीं जायेगी। जिससे सवारियों को तो परेशानी भी होती है। और औने-पौने दाम देते है। प्राइवेट बस वाले जमकर सवारियों को ठूंस-ठूस कर ले जाते है। ना कोई पुलिस वाला बस की चैंकिंग करता है। ना ट्रैफिक पुलिस वाले। यहीं हाल कार वालों का है। जिसमें एक साथ 13-14 सवारियां होती है। जो कोरोना काल में कोरोना के संक्रमण को बड़ी आसानी से बढ़ा रही है।

प्राइवेट बस वालों की काली करतूत के खिलाफ लोगों ने तहलका को बताया कि सरकार की अनदेखी का नतीजा है। जिसके कारण प्राइवेट बस वाले अपनी मनमानी कर रहे है। सत्ता धारी पार्टी से जुड़े एक नेता ने बताया कि इस बारे में जिला स्तर पर जिला अधिकारी को औचक निरीक्षण कर बस चालकों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिये। अन्यथा कोरोना की ऱफ्तार भले ही कम हुई है। फिर से गति पकड़े में देर नहीं लगेगी।क्योंकि उत्तर प्रदेश की प्राइवेट बस वाले एक जिले से दूसरे जिले और कस्बे में सवारियों को ले जाते है। जो कोरोना को बढ़ने और बढ़ाने में अह्म जिम्मेदारी निभा सकता है।

 

किसान आंदोलन के छह माह पूरे होने पर मनाया जा रहा काला दिवस

किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर बुधवार को दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान काला दिवस मना रहे हैं। केंद्र में मोदी सरकार के सात और किसानों के आंदोलन के छह माह पूरे होने के बीच 26 मई को अन्नदाताओं ने सभी किसानों से अपने घरों व वाहनों पर काला झंडा लगाने का आह्वान है।

देशभर के सभी धरनास्थलों पर काली पगड़ी व चुनरी पहनकर धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। पंजाब और हरियाणा के कई गांवों में पीएम का पुतला फूंका गया। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है कि किसानों की मांग मनवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना जरूरी है। इस बीच, तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि वह कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पेश करेगी।

इस मौके पर भारतीय किसान यूनियन यानी भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बताया कि हम काले झंडे के साथ ही तिरंगा भी लेकर चल रहे हैं। छह महीने हो गए हैं, लेकिन सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है। इसलिए किसान काले झंडे रखने को मजबूर हुए हैं। हम सबकुछ शांतिपूर्वक तरीके से कर रहे हैं। इसके साथ ही हम कोविड के नियमों का पालन भी कर रहे हैं।

दिल्ली से सटे यूपी गेट पर काला दिवस मनाने के दौरान भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने मंच से किसानों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि यदि छह महीने में भी सरकार किसानों से बात नहीं करती तो इसका मतलब यह है कि आंदोलन लंबा चलेगा। उन्होंने कहा कि किसान कभी भी सरकार के पुतले फूंकने में विश्वास नहीं रखता था मगर अब सरकार ने मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि काला दिवस महज यूपी बॉर्डर पर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मनाकर विरोध किया जा रहा है।

कोरोना संक्रमण पर सरकार को घेरते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि बीमारी बड़ी है या कानून बड़े हैं। यदि बीमारी बड़ी है तो सरकार कानूनों को रद्द कर किसानों को उनके घर लौट जाने दे। मगर कोरोना तो एक बहाना है जिससे यह कानून बने रहें। देश में लूट जारी रहे। उन्होंने कहा कि आंदोलन लंबा चलाने के लिए भाकियू रणनीति बना रही है।

इधर, दिल्ली में कृषि कानूनों के विरोध में किसान द्वारा मनाए जा रहे काले दिवस को देखते हुए दिल्ली के कई जगहों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। पुलिस ने बताया कि हम सभी गाड़ियों की जांच कर रहे हैं, चाहे वो परमिट गाड़ी भी हो क्योंकि कहीं उस गाड़ी में कोई किसान न जा रहा हो।

टीकरी बॉर्डर पर भी प्रदर्शनरत किसानों ने काले झंडे लगाए  हैं। किसानों ने आंदोलन स्थल पर तिरंगा किसान मोर्चा का झंडा और काला झंडा तीनों लगा रखा है। वहीं, अमृतसर के छब्बा गांव में लोगों ने अपने घरों पर कृषि कानून के विरोध में काले झंडे लगाए। यह झंडे आंदोलनरत किसानों के आह्वान पर काला दिवस मनाने के लिए लगाए गए हैं।

किसानों ने काले झण्डे के साथ विरोध जताया

संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में आज देश भर के किसानों ने केन्द्र सरकार द्वारा थोपे गये, तीन कृषि कानूनों के विरोध में काले झण्डे फहराये। किसानों का कहना है कि 26 नवम्बर 2020 से किसान दिल्ली के बार्डरों पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे है। लेकिन सरकार ने किसानों की मांगों को नहीं माना है। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसान आंदोलन को 26 मई को पूरे 6 महीनें हो गये है। लेकिन सरकार ने किसानों की एक बात को नहीं माना है। उन्होंने कहा कि किसान कोरोना काल में कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुये, देश भर का किसान काले झण्डे लगाकर विरोध कर रहे है। राकेश टिकैत का कहना है कि किसानों का आंदोलन ना तो रूका है और तब तक नहीं रूकेगा जब तक कृषि कानून वापस नहीं हो जाते है। उन्होंने कहा कि अब किसानों का आंदोलन और तेज इसलिये होगा क्योंकि किसानों ने अपनी गेंहू की फसल काट ली और किसान फिलहाल खेती –किसानी के फ्री है।

किसान नेता जगत नारायण का कहना है कि कोरोना काल में किसानों ने किसानों को कोरोना बीमारी से बचाने के लिये किसान आंदोलन थोड़ी कम हुआ था। लेकिन बंद नहीं हुआ था। अब किसानों का आंदोलन तेज होगा। और देश के कोने-कोने में किसान सरकार की किसान विरोधी नीतियों से किसानों और जनता को अवगत कराएगें। ताकि केन्द्र सरकार की जन विरोधी और किसान विरोधी नीतियों को देश के सामने लाया जा सकें। किसान शिव पाल का कहना है कि सरकार की दमन कारी नीतियों के चलते देश में कोरोना फैला है। कोरोना का इलाज देने में सरकार असफल रही है। किसान को कमजोर करने के लिये और आंदोलन को कुचलने के लिये सरकार ने तामाम प्रयास किये है। लेकिन किसानों की एकता के सामने सब, सरकार की साजिशें नाकाम रही है।उन्होंने कहा कि ये आंदोलन तो तब तक चलेगा जब तक मांगों को नहीं मान लिया जाता है।हजारों की संख्या में किसानों ने सरकार की दमन कारी नीतियों को लेकर नारे बाजी कर विरोध जताया है।

आत्मनिर्भर बनना इतना भी आसान नहीं

आपदा –विपदा को अवसर में बदलों और आत्मनिर्भर बनों जैसे जुमलों से बेरोजगार युवा तंग आ चुके है। युवाओं का कहना है कि सरकार की योजनायें तो उन्हीं के लिये है, जो सरकारी सिस्टम में शामिल है। अन्यथा वास्तविकता कुछ और है।

तहलका संवाददाता को युवाओं ने बताया कि इस कोरोनाकाल में आत्मनिर्भर बनने के लिये उन्होंने बैंकों से लोन-कर्ज लिया और अपनी हुनुर के मुताबिक काम भी शुरू किये। किसी ने कोरोनाकाल में सैनेटाइजर, मास्क की दुकान लगाकर तो किसी ने घरों में मास्क बनायें , नये-नये डिजायन के तो ,किसी ने काम आयुर्वेद दवा की दुकान खोली। लेकिन युवाओं के काम –धंधे और आत्मनिर्भ तब पलीता लगा, जब वे सरकारी सिस्टम यानि इंस्पेक्टर सिस्टम से वाकिफ नहीं थे।

सुशील शर्मा का कहना है कि कोरोना काल में लाँकडाउन में उनको सैनेटाइजर और मास्क बेचना बाजारों में तब,तक मुश्किल हुआ जब,तक उन्होंने इंस्पेकटर राज में जो सिस्टम चलता है उसमें चढ़ावा नहीं चढ़ाया है। ऐसे हालात में उनको लाभ कम हानि ज्यादा हुई है।

श्री मति प्रेमलता ने तहलका को बताया कि देश में दिन व दिन अजीब सा माहौल पनप रहा है। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उन्होंने अपना काम शुरू किया परिजनों को ये मानकर काम-काज में शामिल किया कि कोरोना काल एक बीमारी है। जो सालों साल- चलनी है। ऐसे में मास्को को बाजार से सूती कपड़ा खरीदकर खुद बनाया। लेकिन बाजारों में बेचना मुश्किल हो गया। जो जमा पूंजी थी उसको निकालना मुश्किल हो गया।

दिल्ली के साप्ताहिक बाजार बंद है, दिल्ली में लोगों के पलायन होने से अब बाजारों और गलियों में सन्नाटा है। जिससे उनके आत्मनिर्भर बनने और आपना-विपदा को अवसर में बदलने वाली सोच को पलीता लगा है और आर्थिक नुकसान हुआ है। इसी तरह आयुर्वेद की दवा का काम धंधा मंदा पड़ा है।

मौजूदा हालात में लोगों को कई बुनियादी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। युवाओं का कहना है कि अगर लाँकडाउन और कोरोना महामारी यूं ही चलती रही तो, आर्थिक तंगी के साथ भुखमरी शुरू हो जायेगी।

मजाक : विदेशी टीकों को मंजूरी नहीं, राज्य जारी कर रहे वैश्विक निविदा

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को बताया कि कोरोना वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना कंपनी ने कहा है कि वे सीधे राज्यों को टीके नहीं बेचेंगे। वे यह काम सिर्फ भारत सरकार के जरिये करेंगे। इससे पहले रविवार को पंजाब सरकार को भी मॉडर्ना कंपनी ने सीधे टीके देने से मना कर दिया था। दरअसल, केंद्र सरकार ने देश में अभी तक उपरोक्त कंपनियों के कोविड-19 टीकों को इस्तेमाल करने की मंजूरी ही नहीं प्रदान की है।

इससे पहले कई राज्यों ने टीकों को हासिल करने के लिए वैश्विक निविदा जारी की है, दिल्ली भी एक को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। केजरीवाल ने रविवार को कहा था कि वह वैश्विक स्तर पर निर्माताओं से व्यक्तिगत रूप से बात कर रहे हैं और टीके खरीदने में इसकी कीमत बाधा नहीं बनेगी। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को कहा कि फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों ने उनसे कहा है कि वे केंद्र के संपर्क में हैं और राज्य सरकारों के साथ टीके का कारोबार नहीं करेंगी।

उन्होंने बताया कि हमने जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्ना और फाइजर से संपर्क किया और उन्होंने स्पष्ट कहा है कि हम भारत सरकार के संपर्क में हैं और राज्यों को टीके नहीं देंगे। केंद्र ने हमें ग्लोबल टेंडर लगाने को कहा है लेकिन वह इन कंपनियों से अलग से बात भी कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस पर अंकुश लगा रही है साथ ही आपूर्ति को भी नियंत्रित कर रही है। सरकार की ओर से यह भी तय किया जा रहा है कि निजी कंपनियों से कितने टीके मिल सकते अंतरराष्ट्रीय निर्माता कह रहे हैं कि वे केंद्र से ही बात कर रहे हैं। सिसोदिया ने कहा कि मामले को केंद्र सरकार बेहद गंभीरता से ले क्यों कि मामला महामारी से जुड़ा है।

अमेरिका ने पिछले साल दिसंबर में फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन कंपनियों के टीके को मंजूरी दी थी। इनमें से किसी को भी अभी तक केंद्र ने मंजूरी नहीं दी है। इसके बरअक्स अन्य देशों ने न केवल स्वीकृति दी है, बल्कि उनका उपयोग भी कर रहे हैं। भारत में क्या मजबूरी है? हम दो कंपनियों पर निर्भर हैं और यहां तक कि वे खुराक का निर्यात भी कर रही हैं। रूस ने अगस्त 2020 में स्पुतनिक वी को मंजूरी दी और दिसंबर में टीकाकरण शुरू किया। हमने 2020 में मंजूरी देने से इनकार कर दिया और आखिरकार गत अप्रैल में इसे मंजूरी दी गई। 68 देश स्पुतनिक वी के टीके का उपयोग कर रहे हैं।

इंग्लैंड ने गत दिसंबर में फाइजर कंपनी के टीके को मंजूरी दी थी, हम अभी इस पर फैसला ही नहीं कर सके हैं। 85 देशों ने फाइजर के टीके को इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है, 46 देश मॉडर्ना के कोरोना टीके को मंजूरी देकर इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि 41 देशों ने जॉनसन एंड जॉनसन के टीके को आपात इस्तेमाल के लिए अपनी मंजूरी दे दी है। हम अभी तक फैसला ही नहीं कर सके हैं। यह लोगों के साथ आखिर किस तरह का मजाक है? केंद्र सरकार कह रही है कि राज्य वैश्विक स्तर पर टीके खरीदें, लेकिन उन टीकों को देश में इस्तेमाल करने की अब तक मंजूरी ही प्रदान नहीं की गई है।

कोरोना के डेथ सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो क्यों नहीं : मांझी

कोरोना टीके की कमी को लेकर जहां कई राज्य परेशान है और बहुत जगह तो सभी वयस्कों के टीकाकरण पर रोक लगा दी गई है। इस बीच, सियासत और बयानबाजी भी जारी है। कोरोना टीकाकरण के बाद मिलने वाले प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है। इससे पहले विधानसभा चुनाव के दौरान मामले ने तूल पकड था। ताजा मामला बिहार में एनडीए सरकार में साझीदार हम पार्टी ने निशाना साधा है।

हम पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने ट्वीट कर निशाना साधा ‘को-वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद मुझे प्रमाण-पत्र दिया गया, जिसमें प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है। देश में संवैधानिक संस्थाओं के सर्वेसर्वा राष्ट्रपति हैं। इस नाते उसमें राष्ट्रपति की तस्वीर होनी चाहिए। वैसे तस्वीर ही लगानी है तो राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की भी तस्वीर हो। इससे पहले केंद्र सरकार कह चुकी है कि राज्यों को खुद टीकाकरण का खर्च उठाना होगा।

नीतीश सरकार में सहयोगी जीतन राम मांझी ने सोमवार को एक और ट्वीट किया जिसमें लिखा कि वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर यदि तस्वीर लगाने का इतना ही शौक है तो कोरोना से हो रही मृत्यु के डेथ सर्टिफिकेट पर भी तस्वीर लगाई जाए। यही न्याय संगत होगा।

महामारी के मामलों में लगातार गिरावट जारी, पर मौतें चिंता का सबब

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप आंकड़ों में तो कम होता जा रहा है, जिससे सरकार राहत की सांस ले सकती है, लेकिन मौत के आंकड़े लगातार चिंता का सबब बने हुए हैं। अब भी रोजाना औसतन करीब चार हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है, जबकि संक्रमितों का आंकड़ा निरंतर कम हो रहा है।उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश के आधे से ज्यादा प्रदेशों में लॉकडाउन या सख्त पाबंदियां अब भी लागू हैं। देशभर में पिछले 24 घंटे में 2.22 लाख नए कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं और 4,455 लोगों की मौत हो गई।

इसी बीच, ब्लैक फंगस ने भी महामारी का नया रूप ले लिया है। इसके मरीजों की तादाद भी रोजाना बढ़ रही है। इसकी दवाओं की भी किल्लत है और मरीजों के लिए नई समस्या पैदा हो गई है। अभी वे कोरोना संक्रमण के दर्द की वजह से अपनी कराह खत्म नहीं कर पाए थे कि नई मुसीबत घर कर गई है। बिहार और उत्तराखंड में कोरोना कर्फ्यू को एक जून तक बढ़ा दिया गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने सोमवार को बताया कि कि पिछले 22 दिनों से देश में सक्रिय मामलों की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है। 3 मई के समय देश में 17.13 फीसदी सक्रिय मामलों की संख्या थी अब यह घटकर 10.17 फीसदी रह गई है। पिछले 2 हफ्तों में सक्रिय मामलों की संख्या में करीब 10 लाख की कमी दर्ज की गई है।

लव अग्रवाल ने कहा कि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को कुल 14.56 करोड़ (पहली और दूसरी खुराक) टीके ले चुके हैं। जबकि 18 से 44 वर्ष की आयु के लोगों को 1.06 करोड़ टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है। वहीं, उत्तर प्रदेश अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि पिछले 24 घंटे में कोविड संक्रमण के 3,981 मामले सामने आए और 11,918 लोग डिस्चार्ज हुए। अब 76,703 सक्रिय मामले बने हुए हैं। रिकवरी दर 94.3 फीसदी हो गई। वहीं 24 घंटे में 157 लोगों की मृत्यु हुई। कल प्रदेश में 3,26,399 नमूनों की जांच की गई।

लाँकडाउन से कूलर और पंखे के कारोबार पर चोट

कोरोना के कहर और लाँकडाउन के चलते सीजनल धंधों का बेड़ा गर्क हो रहा है। पिछली साल 2020 में लाँकडाउन के लगने से कूलर –पंखों का कारोबार करने वालों का सारा का सारा काम धंधा चौपट हो गया था। फिर 2021 में कोरोना का कहर लोगों के जीवन में ही संकट बनकर नहीं आया है। बल्कि धंधें वालों पर रोजी-रोटी का संकट बनकर आया है। कूलर –पंखों का काम करने वाले कूलर व्यापारी प्रदीप शुक्ला का कहना है कि दिल्ली से देश के कई राज्यों में उनके कूलर- पंखे थोक और फुटकर में विकते थे। लेकिन लाँकडाउन के कहर ने सब कुछ चौपट कर दिया है।

दिल्ली के कमला मार्केट के कूलर व्यापारी हिमांशु का कहना है कि कई बार मुशीबत एक साथ इंसान का इंम्तिहान लेती है। जैसे कोरोना का कहर , लाँकडाउन और इस साल तो मई माह में गर्मी तो कम ही पड़ी है। उस पर ताउते तूफान ने ऐसी वर्षा की है। धंधा सब पानी-पानी हो गया है। हिमांशु का कहना है कि अप्रैल –मई माह में ही कूलर की बिक्री ही सबसे ज्यादा होती है। लेकिन लाँकडाउन के चलते नहीं हो पायी है । अब तो जून का महीना आने वाला है। जो धंधें की बाट लगा देगा। ऐसे में कूलर व्यापारियों ने सरकार से मांग की है। उनको को भी कुछ राहत पैकेज के माध्यम से राहत दी जाये ताकि, वे अपने परिवार का अपना पालन पोषण कर सकें।

दिल्ली में कोरोना के मामलों में गिरावट, लोगों ने ली राहत की सांस

दिल्ली में कोरोना के मामलों में लगातार गिरावट आने से, दिल्ली के लोगों ने राहत की सांस ली है। 23 मई को 1649 कोरोना के मामलें आये है और 189 लोगों की कोरोना से मौत हुई है। अब तक मई के महीने सबसे कम मामलें और कम मौतें है। दिल्लीवासियों ने तहलका संवाददाता को बताया कि लाँकडाउन का नतीजा है। जिससे कोरोना के मामले कम हुये है।

लोगों ने कोरोना गाइड लाइन का कड़ाई से पालन किया है।मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार का कहना है कि दिल्ली सहित पूरे देश में कोरोना के मामलों में गिरावट आने से ,कोरोना को जल्दी से काबू पा लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें और मुंह में मास्क लगाये तो निश्चित तौर पर कोरोना चला जायेगा।

डाँ विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना के साथ-साथ अन्य रोग से पीड़ित रोगियों को समय पर इलाज मिलना चाहिये। जिसमें मधुमेह रोगी को तो समय –समय पर स्वास्थ्य का चैकअप करवाते रहना चाहिये। और नियमित व्यायाम पर बल देना चाहिये। हार्ट रोग से पीड़ित मरीजों को सीने के दर्द और जबड़े के दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये। क्योंकि कई बार जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है।

चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा ने फानी दुनिया को कहा अलविदा

चिपको आंदोलन के प्रणेता और मशहूर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। पिछले दिनों कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती करवाया गया था। शुक्रवार को 95 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके साथ ही उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई। देशभर में उनके जाने से शोक संदेशों का सिलसिला शुरू हो गया।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के निधन की खबर मिलते ही प्रधानमंत्री, राजनीतिक दल, सामाजिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन देश के लिए बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की सदियों पुरानी परंपरा को जोड़े रखा। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट किया-चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित है। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

चिपको आंदोलन से मशहूर हुए
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पहाड़ी इलाकों में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया था। इसी दौरान वृक्षों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन का आगाज हुआ। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में बड़े पैमाने पर कटाई शुरू की गई थी। 1974 में बहुगुणा के नेतृत्व में कटाई का विरोध शांतिपूर्ण तरीके से शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने विरोध का अनूठा तरीका ईजाद किया। जब कोई पेड़ काटने के लिए पहुंचता तो स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो जाती थीं और उस पेड़ की जिंदगी बच जाती थी। इसके बाद पूरी दुनिया इसे चिपको आंदोलन के नाम से जानने लगी।

वृक्ष मित्र और हिमालय के रक्षक का तमगा मिला

सुंदरलाल बहुगुणा जितने क्रांतिकारी शख्सियत रहे, उतने ही आम जीवन में वे सरल और सौम्य चिंतन मनन करने वाले रहे। उनके जीवन में पत्नी विमला के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मंचों पर बोलने का अंदाज उनका बेहद विनम्र होता था, जो हर किसी को आकृष्ट कर लेता था। प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में जाना गया।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी में हुआ था। विलक्षण प्रतिभा वाले बहुगुणा किशोरावस्था से ही सामाजिक क्षेत्र और जन सरोकारों से जुड़े रहे।18 साल की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए लाहौर भेजा गया। वहां डीएवी कॉलेज में तालीम हासिल की। महान क्रांतिकारी शहीद श्रीदेव सुमन उनके मित्रों में से थे जिनके कहने पर उन्होंने सामाजिक क्षेत्र से जुड़ने का मन बना लिया।
1956 में 23 साल की उम्र में  विमला देवी के साथ विवाह होने के बाद उन्होंने अपनी जीवन की दिशा बदल ली। वह प्रकृति की सुरक्षा और सामाजिक हितों से जुड़े आंदोलनों में अपना योगदान देने लगे। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों को प्रवेश के अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया। शादी के बाद गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। इसके बाद कई सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेकर अपने आपको साबित किया।