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चिराग ने 5 सांसदों को एलजेपी से निलंबित किया, बागियों ने उन्हें हटाया अध्यक्ष पद से

एलजेपी संगठन में बहुमत का दावा करते हुए एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने मंगलवार शाम पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आपात बैठक बुलाकर पार्टी के सभी 5 बागी सांसदों को एलजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इनमें उनके चाचा पशुपति पारस भी शामिल हैं जिनके नेतृत्व में पार्टी सांसदों ने बगावत की। अन्य में  प्रिंस राज, वीणा देवी, महबूब अली कैसर और चंदन सिंह शामिल हैं। उधर बागियों ने  आज सुबह चिराग को अध्यक्ष पद से हटाने का ऐलान कर दिया था।
इससे पहले आज सुबह पारस गुट ने चिराग को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने और सूरजभान सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की बात कही थी। हालांकि, इसके बाद चिराग ने दावा किया कि एलजेपी कार्यकारिणी का बहुमत उनके साथ है। साथ ही चिराग ने कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पाँचों बागी सांसदों को एलजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
कार्यकारिणी के इस फैसले के बाद यह सांसद पार्टी में किसी भी तरह के फैसले लेने के अधिकारी नहीं होंगे। इन सांसदों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप लगाकर उन्हें एलजेपी की सक्रिय सदस्यता से निलंबित किया गया।
इससे पहले चिराग पासवान को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने का दावा करने से गुस्साए चिराग समर्थकों ने लोक जनशक्ति पार्टी के ऑफिस में घुसकर सांसद पशुपति पारस के पोस्टर पर पहले कालिख पोती और फिर चिराग पासवान जिंदाबाद के नारे लगाए।
चिराग की बुलाई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक में 5 सांसदों को निलंबित करने के बाद अब पार्टी की राजनीति गरमा गयी है। मामला अब कोर्ट में भी जा सकता है। हालांकि, यह साफ़ है कि पार्टी अब टूट गयी है।

सीएए विरोधी आंदोलन के समय हिंसा के बाद गिरफ्तार नताशा, आसिफ, देवांगना को जमानत  

सीएए विरोधी आंदोलन के समय पिछले साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा को एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा मानने के आरोप में गिरफ्तार किये गए यूएपीए आरोपी नताशा नरवाल, आसिफ इकबाल तन्हा और देवांगना कालिता को मंगलवार दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है।
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने मंगलवार इन सभी को जमानत देते हुए कहा – ‘विरोध प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं है।’ इन सभी को अदालने ने इस आधार पर जमानत दी है कि वे अपने पासपोर्ट अधिकारियों के पास सरेंडर करेंगे और किसी ऐसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे, जिससे जांच किसी भी तरह प्रभावित हो।
बता दें नताशा नारवाल और देवंगाना कलिता, दिल्‍ली स्थित महिला अधिकार ग्रुप पिंजरा तोड़’ के सदस्‍य हैं जबकि आसिफ जामिया मिल्लिया इस्‍लामिया के छात्र हैं। याद रहे नताशा नरवाल को मई में पिता महावीर नरवाल के अंतिम संस्‍कार में शामिल होने के लिए 30 मई तक अंतरिम जमानत मिली थी और 31 को वे वापस आ गयी थीं।  महावीर, जो कम्‍युनिस्‍ट पार्टी नेता थे, की कोरोना के चलते मृत्यु हो गयी थी।
हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भमभानी ने की। यहाँ बता दें फरवरी 2020 में दिल्‍ली में सीएए  विरोधी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी और उस दौरान कई दुकानों को जला दिया गया था। सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा था।  नताशा और देवंगाना को दंगों की साजिश के मामले में फरवरी में ही गिरफ्तार किया गया था। उन्हें इसी तरह के आरोपों पर दिल्‍ली के जाफराबाद इलाके में पहले गिरफ्तार करने के बाद जमानत दे दी गई थी लेकिन उसके बाद दिल्‍ली पुलिस ने नताशा और देवंगाना को फिर गिरफ्तार कर लिया था।

राज्यपाल के साथ बैठक में 24 विधायकों के नदारद रहने के बाद बंगाल भाजपा में हड़कंप    

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ऐन पहले टीएमसी से दलबदलकर भाजपा में गए सुवेन्दु अधिकारी के खिलाफ विद्रोह बढ़ता जा रहा है। भाजपा नेतृत्व ने अधिकारी को  तमाम वरिष्ठ नेताओं अंगूठा दिखाते हुए भाजपा विधायक दल का नेता बनवा दिया था। इसके बाद पार्टी में जबरदस्त नाराजगी है। सोमवार को जब अधिकारी राज्यपाल
जगदीप धनखड़ से मिलने गए तो 74 में से 24 विधायक नदारद रहे। इसके बाद बंगाल भाजपा विधायक दल में बड़ी टूट की चर्चा तेज हो गयी है। उधर राज्यपाल धनखड़ आज गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आये हैं।
वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय और उनके बेटे सुभ्रांशु रॉय के भाजपा छोड़कर टीएमसी में वापस लौटने के बाद कई और नेता भाजपा छोड़ने की तैयारी में दिख रहे हैं। अब 24 विधायकों के अधिकारी के साथ राज्यपाल से न मिलने से इन सभी विधायकों को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है।
बंगाल भाजपा विधायक दल का एक बड़ा वर्ग सुवेन्दु अधिकारी को अपना नेता  (विधायक दल का नेता) मानने को कतई तैयार नहीं है। अधिकारी को यह पद देने के आलाकामन के निर्णय के बाद कई विधायकों ने टीएमसी नेतृत्व से संपर्क किया है। इन विधायकों में से कई का अंदरखाते कहना है कि सुवेन्दु अधिकारी को नेता मानने से तो बेहतर है, टीएमसी में ही चले जाएँ।
भाजपा के लिए मुकुल रॉय भी बड़ा संकट बनने जा रहे हैं। भाजपा में ऐसे कई नेता/विधायक हैं जो मुकुल रॉय को बहुत मानते हैं। मुकुल ने जब विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी छोड़ भाजपा का दामन थामा था, तो भी उन्होंने टीएमसी या ममता बनर्जी को लेकर कमजोर टिप्पणी नहीं की थी। इसके विपरीत सुवेन्दु अधिकारी ममता बनर्जी के खिलाफ कथित रूप से अपशब्दों का इस्तेमाल करने से भी गुरेज करते नहीं दिखे हैं।
ममता कह चुकी हैं कि वो ऐसे नेताओं को पार्टी में वापस नहीं लेंगी जो टीएमसी के खिलाफ आग उगल चुके हैं या पैसे या पद के लालच में भाजपा में गए थे। बेशक
भाजपा बंगाल में किसी बगावत की खबरों को अफवाह बता रही है, सुवेंदु के साथ राज्यपाल से मिलने न जाने वाले विधायकों की इतनी बड़ी संख्या से बेचैन है। यदि यह विधायक पाला बदलते हैं तो भाजपा से बाद में और लोग भी टूटेंगे।
वरिष्ठ नेता राजीव बनर्जी, दीपेंदु विश्वास आदि की जल्द घर वापसी की चर्चा पहले से  तेज है। मुकुल रॉय के विधायक पद से इस्तीफे की मांग कर रही भाजपा को फिलहाल बंगाल में पार्टी नेताओं को संभालना बड़ी चुनौती बन गया है।

यूपी में बसपा के 9 बागी विधायक अखिलेश यादव से मिले, सपा में शामिल होने की तैयारी में

बसपा के 9 बागी विधायक, जिन्हें मायावती ने पार्टी से बाहर किया हुआ है, सपा के अखिलेश यादव की पार्टी में शामिल होने की तैयारी में हैं। बसपा के बागी विधायक असलम राइनी के नेतृत्व में यह विधायक मंगलवार (आज) समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के दफ्तर उनसे मिले हैं। इसके बाद राजधानी लखनऊ में चर्चा है कि यह सपा में शामिल हो सकते हैं।
मायावती ने कड़ी कार्रवाई करते हुए विधान परिषद के चुनाव में इन विधायकों के पार्टी लाइन से बाहर जाकर वोट करने के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब चर्चा है कि सभी 9 बागी बसपा विधायक समाजवादी पार्टी में जाने वाले हैं। कहा जाता है कि सभी 9 विधायक अगले साल विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट की गारंटी चाहते हैं। अभी तक सपा ने इन विधायकों को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है।
बसपा के बड़े नेता लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को मायावती ने पार्टी से कुछ समय पहले निष्कासित किया था। एक तरह से मायावती अपने  सभी कद्दावर नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है। अभी तक मायावती 11 विधायकों को पार्टी से बाहर कर चुकी हैं जबकि उसके 18 विधायक थे। एक तरह से मायावती और बसपा यूपी की राजनीति में अप्रासंगिक दिखने लगे हैं। पार्टी की गतिविधियां भी न के बराबर हैं।
याद रहे 2017 में बसपा के 19 विधायक जीते थे जिसमें अनिल सिंह और रामवीर उपाध्याय को पार्टी ने निलंबित कर दिया। मुख्तार अंसारी जेल में हैं और रितेश पाण्डेय सांसद बन चुके हैं।
देखा जाए तो यूपी में भाजपा के बाद कोई पार्टी यदि मैदान में सबसे सक्रिय है तो वह कांग्रेस है। अखिलेश यादव भी सक्रिय हो चुके हैं। पिछले लगभग एक साल में प्रियंका गांधी जनता से जुड़े मुद्दे उठाने के मामले में अखिलेश यादव और मायावती के मुकाबले कहीं ज्यादा सक्रिय हैं। हाल के स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा को तगड़ा झटका लगने के बाद पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व ख़ासा सक्रिय हुआ है। योगी नरेंद्र मोदी,   अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे बड़े नेताओं से कुछ रोज दिल्ली में मिल चुके हैं।

शशिकला से बात करने पर अन्नाद्रमुक ने 16 नेताओं को पार्टी से निकाला

शशिकला से बात करने पर अन्नाद्रमुक ( एआईएडीएमके या ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) ने सोमवार को पार्टी के 16 नेताओं पर कार्रवाई की। इन नेताओं महज बातचीत किए जाने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, अन्नाद्रमुक ने प्रवक्ता वी पुगाझेंदी को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

अन्नाद्रमुक की ओर से जारी एक बयान में पार्टी ने शशिकला की पार्टी कैडर से हुई फोन वार्ता को एक नाटक करार दिया। इसने कहा कि पार्टी कभी भी एक परिवार की इच्छाओं के लिए खुद को बर्बाद नहीं करेगी। पार्टी ने कहा कि शशिकला से बात करने वाले हर कार्यकर्ता पर कार्रवाई की जाएगी। आगे भी उन्होंने संकेत दिया कि जो उनके करीब दिखेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

कुछ दिन पहले तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की सहयोगी शशिकला का एक ऑडियो लीक हुआ था, जिसमें उन्होंने राजनीति में वापसी के संकेत दिए थे। ऑडियो के सामने आने के बाद अन्नाद्रमुक में बेचैनी बढ़ना लाजिमी है। पार्टी नेता सी पोन्नईयन ने गत शनिवार को कहा था कि शशिकला का अन्नाद्रमुक से नहीं, बल्कि एएमएमके पार्टी से रिश्ता है और अन्नाद्रमुक को पुनर्जीवित करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने दावा किया कि शशिकला उनकी पार्टी की सदस्य नहीं हैं क्योंकि वह टीटीवी दिनाकरन की अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएमएमके) से संबंधित हैं

अन्नाद्रमुक की निष्कासित नेता शशिकला ने मार्च में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीति से संन्यास का एलान किया था। इसके बाद पिछले महीने उनका एक ऑडियो लीक हुआ था जिसमें उन्हें सियासत में लौटने की बात कही गई थी।

विश्व रक्त दान दिवस पर युवाओं ने रक्तदान किया

विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर आज विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा रक्तदान शिविर के आयोजन किये गये इस मौके पर लोगों ने रक्तदान भी किया। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार का कहना है कि रक्तदान करने से शरीर में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ्य वयक्ति रक्तदान कर सकता है।डाँ विवेका कुमार का कहना है कि एक व्यक्ति के रक्तदान करने से कई लोगों की जिंदगी को बचाया जा सकता है।

कीर्ति नगर में इंडियन हार्ट फाउण्डेशन के सौजन्य से रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया । जिसमें युवाओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया । इस मौके पर डाँ आर एन कालरा ने बताया कि कोरोना काल चल रहा है। लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधानी बरतनी होगी। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि रक्त दान करने से लोगों को हिचकना नहीं चाहिये। क्योंकि रक्तदान तो एक व्यक्ति करता है। लेकिन उससे कई लोगों की जिन्दगी को बचाया जा सकता है।

डाँ कालरा ने कहा कि हमारें देश में रक्त समय पर रोगियों को नहीं मिलने से ना जाने कितने लोगों की जिन्दगी समाप्त हो गयी।उन्होंने बताया कि हर साल 14 जून को रक्तदान दिवस के अवसर पर लोगों को रक्तदान के प्रति जागरूक किया जाता है। ताकि लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता बढ़े। क्योंकि कोरोना के साथ अन्य बीमारियों में रक्त की रोगी को सख्त जरूरत होती है। रक्त समय पर रोगियों को समय पर नहीं मिलने से ना जाने कितने रोगियों की जानें चली गयी है। इसलिये रक्त दान कर लोगों की जिदंगी बचाने में अहम भूमिका निभाये।

मोदी मंत्रिमंडल विस्तार से पहले एलजेपी में ‘टूट’, चिराग के चाचा पशुपति बने बगावत के सूत्रधार  

पिता रामविलास पासवान की मौत के कुछ ही महीनों बाद बेटे चिराग पासवान बिहार की राजनीति में अकेले पड़ते दिख रहे हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 6 सीटें जीतने वाली उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) लगभग टूट गयी है। पार्टी के 5 सांसद चिराग के चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में उनसे बागी हो गए हैं और खुद को असली एलजेपी बताया है। अब से कुछ पहले चिराग पशुपति से मिलने उनके आवास पर पहुंचे हैं ताकि उन्हें मनाया जा सके, लेकिन चाचा  मुलाकात अभी नहीं हुई है। यह सारी कवायद जल्दी ही मोदी मंत्रिमंडल में होने वाले फेरबदल/विस्तार का हिस्सा दिखती है, क्योंकि पशुपति ने कहा है कि वे एनडीए के साथ थे और हमेशा रहेंगे। उनके ब्यान से संकेत मिलता है कि चिराग से बगावत के बाद पशुपति के मोदी सरकार में मंत्री बनने की संभावना बनी है।
दिलचस्प बात यह है कि चाचा ने भतीजे चिराग को पार्टी संसदीय दल से हटा देने की बात कही है। इसके बाद जब चिराग दिल्ली में चाचा पशुपति पारस से मिलने उनके सरकारी आवास पहुंचे तो चाचा उन्हें मिलने से कन्नी काट गए हैं। चिराग पिछले आधा घंटा से पशुपति के घर के बाहर पार्किंग में कार में ही बैठे हैं। बताया गया है कि पशुपति ”घर पर नहीं” हैं। दिलचस्प यह है कि बागियों ने लोकसभा सचिवालय को एलजेपी के 5 सांसदों के हस्ताक्षर सहित बताया है कि अब पशुपति पारस उनके नेता हैं।
बिहार की राजनीति एलजेपी में इस टूट से गरमा गयी है। विधानसभा चुनाव में चिराग के नेतृत्व में एलजेपी का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था। पिछले कुछ समय से चिराग के कामकाज को लेकर एलजेपी के सांसद और अन्य नेता सवाल खड़े कर रहे थे, हालांकि, वे मुखर नहीं थे। अब अचानक एलजेपी में टूट की खबर आई है।
जो पांच सांसद चिराग पासवान से बगावत कर रहे हैं उनमें नवादा से चंदन कुमार, समस्तीपुर से प्रिंस पासवान, खगड़िया से महबूब अली कैसर और वैशाली से वीणा देवी शामिल हैं जिनका नेतृत्व चिराग के चाचा पशुपति पारस कर रहे हैं।
यह माना जा रहा है कि एलजेपी की टूट के पीछे भाजपा हो सकती है और वह पशुपति को मोदी सरकार में मंत्री बना सकती है। मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल/विस्तार की ख़बरें तेज हैं और जल्दी ही यह हो सकता है। हाल में उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दलों के नेताओं अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के संजय कुमार निषाद और प्रवीण कुमार निषाद ने दिल्ली में भाजपा के बड़े नेताओं से मुलाकात की थी जिसे मंत्रिमंडल में विस्तार के आधार पर देखा जा रहा है।
यदि देखें तो मोदी सरकार में आज 60 मंत्री हैं। मंत्रिमंडल में नियमों के मुताबिक अधिकतम 79 मंत्री हो। अभी कुछ मंत्रियों के पास एक से ज्यादा विभाग हैं। सरकार में पीएम मोदी के अलावा 21 केबिनेट, 9 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 29 राज्य मंत्री हैं।
अब कांग्रेस से भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया, असम के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए (चुनाव के बाद) सर्वानंद सोनोवाल, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आदि प्रमुख नाम हैं जिन्हें मंत्री बनाने की चर्चा है। सिंधिया के कांग्रेस से उनके साथ भाजपा में आये समर्थकों ने तो अपने क्षेत्र में अभी से यह दावा करना शुरू कर दिया है कि उनके नेता ज्योतिरादित्य मंत्री बन रहे हैं। सहयोगी दलों में मोदी सरकार में सिर्फ एक रिपब्लिकन पार्टी के रामदास आठवले राज्य मंत्री हैं।

दमन का क़ानून

इस अंक में ‘तहलका की आवरण कथा देशद्रोह के क़ानून और वर्षों से इसका दुरुपयोग कैसे किया गया है; के बारे में है। एक मीडिया हाउस के रूप में हम स्वतंत्र और निडर पत्रकारिता की वकालत करते रहे हैं। हाल के वर्षों में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए देशद्रोह के तहत मामले दर्ज किये गये हैं। वास्तव में सरकारों द्वारा राजद्रोह के प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है। एक स्वतंत्र और निडर मीडिया एक जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। इसी सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के हाल के दो फ़ैसले आशा की एक किरण जगाते हैं। यह खुशी की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के कामकाज की आलोचना करने के मीडिया के अधिकार के साथ खड़ा हो गया है। पत्रकार विनोद दुआ के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री को निशाना बनाने वाली उनकी कथित टिप्पणियों के लिए दर्ज देशद्रोह के मामले को रद्द करते हुए अदालत ने फ़ैसला सुनाया कि ‘केवल जब शब्दों या अभिव्यक्तियों में सार्वजनिक अव्यवस्था या क़ानून और व्यवस्था की गड़बड़ी पैदा करने की घातक प्रवृत्ति या इरादा हो, तो ही धारा-124(ए) (देशद्रोह) और आईपीसी की धारा-505 (सार्वजनिक शरारत) के तहत क़दम उठाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘एक नागरिक को सरकार द्वारा किये गये उपायों की आलोचना करने या टिप्पणी करने का अधिकार है; की टिप्पणी के साथ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में देशद्रोह के मामले को ख़ारिज करने के एक दिन बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस फ़ैसले का स्वागत किया। यह कहते हुए कि ‘यह निर्णय देशद्रोह के मामलों से पत्रकारों की रक्षा के महत्त्व को रेखांकित करता है। एडिटर्स गिल्ड ने ‘स्वतंत्र मीडिया और लोकतंत्र पर राजद्रोह क़ानूनों के ख़राब प्रभाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की चिन्ताओं की सराहना की। इसमें कहा गया है- ‘गिल्ड इन कठोर और पुरातन क़ानूनों को निरस्त करने की माँग करता है, जिनका किसी भी आधुनिक उदार लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि औपनिवेशिक युग के क़ानून के दायरे और मापदण्डों की व्याख्या की आवश्यकता है; विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के अधिकार के सम्बन्ध में, जो देश में कहीं भी किसी भी सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री को प्रसारित या प्रकाशित कर सकता है। इस मामले में अदालत ने दो तेलुगु समाचार चैनलों को संरक्षण दिया था, जिन पर आंध्र प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ विचार प्रसारित करने के लिए राजद्रोह क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। आंध्र प्रदेश पुलिस ने 14 मई को राज्य की कोविड-19 से निपटने के लिए बनायी गयी प्रबन्धन नीति की निंदा करने के लिए दो पत्रकारों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा-124(ए), 153(ए) और 505 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
यह दो निर्णय अब मीडियाकर्मियों को देशद्रोह के आरोप के साथ पकड़े जाने के डर के बिना अपना काम करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। क्योंकि इस क़ानून का अक्सर सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों के ख़िलाफ़ दुरुपयोग किया गया है और उन पर नियमित अंतराल में देशद्रोह का आरोप लगाया जाता रहा है। हाल में कुछ पत्रकारों के साथ यही हुआ; क्योंकि उन्होंने सत्ता के ख़िलाफ़ टिप्पणियाँ की थीं। जो कोई भी सत्ता के कामकाज से असहमति जताता है, उस पर राजद्रोह क़ानून के तहत मामला बनाया जा सकता है। यह उचित तो नहीं कहा जा सकता। इसमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। निश्चित ही ऐसे हालत में सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसलों का स्वागत किया जाना चाहिए।

चरणजीत आहुजा

षड्यंत्र के ड्रोन

जम्मू क्षेत्र में ड्रोन हमला और उनकी निरंतर उपस्थिति सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा

जम्मू हवाई अड्डे के तकनीकी क्षेत्र में ड्रोन से हमला सुरक्षा की एक बड़ी चूक तो है ही, सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी गम्भीर चिन्ता का विषय है। ‘तहलका’ की छानबीन बताती है कि जम्मू हवाई अड्डे के आसपास भवनों का जंगल सुरक्षा के लिहाज़ से बड़ा ख़तरा बन गया है। हवाई अड्डा नियमावली में जो नियम हैं, उन नियमों का पालन नहीं हुआ है, जिससे इन मकानों से कोई भी अवांछित गतिविधि कर सकता है। हवाई अड्डे से जितनी दूरी पर मकान का निर्माण होना चाहिए, उससे कम दूरी में ये मकान हैं। जानकारी के मुताबिक, जो सुरक्षा एजेंसियाँ छानबीन कर रही हैं, उसमें भी यह सामने आया है कि इन्हीं में से किसी मकान से ड्रोन की गतिविधि संचालित होने की इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। सुरक्षा एजेंसियाँ ड्रोन से हमले को गम्भीर ख़तरा मान रही हैं और इससे निपटने की तैयारियाँ भी शुरू कर दी गयी हैं। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि कुछ महीने पहले पंजाब की अमरिंदर सिंह सरकार ने बाक़ायदा एक पत्र के ज़रिये केंद्र सरकार को ड्रोन गतिविधियों के प्रति सचेत किया था। इसके बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और आख़िरकार जम्मू हवाई अड्डे के तकनीकी क्षेत्र में ड्रोन से हमला हो गया। हालाँकि ड्रोन का इस्तेमाल करके आतंकी संगठनों के भारत को निशाना बनाने की कोशिशों का मसला भारत ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भी उठाया है।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, ड्रोन के रूप में भारत के सामने एक नया सुरक्षा ख़तरा पैदा हुआ है। उन्होंने चेताया है कि ड्रोन के ज़रिये सीमा पार बैठे आतंकवादी भारत में महत्त्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बना सकते हैं। यह पहली बार है, जब भारत में किसी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है।
हालाँकि सच यह भी है कि जम्मू क्षेत्र में सीमा पास पहली बार ड्रोन 2013 में देखा गया था। तब वहाँ ड्रोन का मलवा पड़ा मिला था। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह की इस सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि ड्रोन सीमापार से उड़कर यहाँ आये हों और अपना काम करने के बाद लौट गये हों। जम्मू हवाई अड्डे की घटना के बाद जाँच में यह भी सामने आ रहा है कि ड्रोन तवी नदी के ऊपर से उड़ान भरकर भेजे गये।
फॉरेंसिक एनालिसिस (न्यायिक जाँच) का यह आकलन है कि हमले में इस्तेमाल किया गया विस्फोटक आरडीएक्स था, जिससे हमले की गम्भीरता को समझा जा सकता है। जाँच में पाया गया है कि विस्फोटक भले एक सामान्य यंत्र (डिवाइस) लगता है, लेकिन ज़मीन के सम्पर्क में आते ही उसका असर काफ़ी
प्रभावी था।
वैसे जाँच एजेंसियाँ अभी तक इस बात को लेकर अँधेरे में हैं कि वास्तव में ड्रोन आया कहाँ से? एक अनुमान यह जताया गया है कि हवाई अड्डे के आसपास के घरों में से किसी घर से ड्रोन उड़ाया गया। ड्रोन हमला करके वापस कहाँ से गया, इसकी भी कोई ठोस जानकारी अभी तक नहीं है। सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक, पिछले कुछ मामलों की जाँच से यह सामने आया है कि हथियार गिराने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल सीमा पार से किया गया। इक्का-दुक्का मौक़ों पर ऐसे ड्रोन भारत ने मार गिराये हैं। यदि जम्मू हवाई अड्डे के आसपास के क्षेत्र का जायज़ा लिया जाए, तो ज़ाहिर होता है कि वहाँ सुरक्षा को ख़तरे में डालने की हद तक मकान नज़दीक हैं। पहले की कुछ जाँच रिपोट्र्स में इन मकानों को हवाई अड्डे, जहाज़ों और यात्रियों के अलावा सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए ख़तरा बताया जा चुका है।
जानकारों के मुताबिक, इस ख़तरे को कम करने के लिए जो उपाय किये गये हैं, वो नाकाफ़ी हैं। इनमें ऐसे बहुत से मकान किराये पर रहते हैं। सभी पर तो शक नहीं जताया जा सकता; लेकिन वहाँ सुरक्षा के लिए ख़तरा तो है ही। पुलिस वहाँ किरायेदारों के सत्यापन के लिए किरायेदार जाँच-प्रपत्र मकान मालिकों को देती तो है, मगर इस पर बहुत नियमपूर्वक अमल नहीं होता। इस प्रपत्र में किरायेदार की फोटो सहित उसकी पूरी जानकारी सम्बन्धित पुलिस थाने में देनी ज़रूरी होती है। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह कहते हैं कि मामले की जाँच अभी चल रही है। हमें जो जानकारी मिलती है, उसे अन्य सुरक्षा एजेंसियों से साझा करते हैं। पुलिस ने महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को आतंकवादी संगठनों से नये ख़तरे के बारे में अवगत करा दिया है। सभी अहतियाती क़दम उठाये गये हैं। डीजीपी दिलबाग सिंह ने यह भी कहा कि जनता को जम्मू-कश्मीर में ड्रोनों का अनधिकृत इस्तेमाल नहीं करने के सम्बन्ध में आम चेतावनी जारी कर दी गयी है। ऐसा होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
हालाँकि सच यह है कि सन् 2018 में ड्रोन को लेकर भारत में नये दिशा-निर्देश आये थे और बाद में भी इनमें कुछ संशोधन किये गये हैं। डीजीसीए के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, 250 ग्राम से ऊपर वज़न वाला ड्रोन रिहायशी इलाक़ों में बिना मंज़ूरी के नहीं उड़ाया जा सकता। हवाई अड्डे या हेलीपैड के पाँच किलोमीटर के दायरे में ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता। संवेदनशील क्षेत्र या उच्च स्तरीय सुरक्षा वाले क्षेत्र में ड्रोन उड़ाने की पाबंदी है। यहाँ तक कि सरकारी कार्यालयों, सैन्य क्षेत्र में ड्रोन उड़ाना वर्जित है।
हालाँकि ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, हाल के वर्षों में इनमें से कुछ नियमों को ताक पर रखकर ड्रोन उड़ाये जाते रहे हैं और भारत में ड्रोन के इस्तेमाल का प्रचलन बढ़ा है। भारत में कई स्टार्टअप कम्पनियाँ हैं, जो अपना काम ड्रोन की मदद से करती हैं। सच यह है कि ड्रोन बहुत तेज़ी से भारतीय अर्थ-व्यवस्था का हिस्सा बन रहे हैं। खेती से लेकर स्मार्ट सिटी के सर्वे तक में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे ड्रोन, जिनका वज़न 250 ग्राम से दो किलो के बीच होता है और जिसमें कैमरा भी सक्रिय होता है। ऐसे ड्रोनों को उड़ाने के लिए पुलिस की मंज़ूरी आवश्यक होती है, जिनका वज़न दो किलो से ज़्यादा होता है या फिर जो 200 फिट से ज़्यादा ऊँचाई पर उड़ सकते हैं। ऐसे ड्रोन उड़ाने के लिए अनुज्ञा-पत्र (लाइसेंस), उड़ान योजना (फ्लाइट प्लान) के साथ-साथ पुलिस अनुमति (परमीशन) और कई मामलों में डीजीसीए की अनुमति लेनी ज़रूरी होती है। बिना डीजीसीए की अनुमति के 25 किलो से ऊपर के ड्रोन को उड़ाना ग़ैर-क़ानूनी है। ऐसे में सीमा के भीतर आकर (यदि ड्रोन पाकिस्तान की तरफ़ से भेजा गया) ड्रोन भारत के एक सैन्य क्षेत्र में आकर हमला कर जाए और किसी को ड्रोन की कोई ख़बर न मिले, यह भी अचम्भे वाली बात ही है। इस घटना से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि इस तरह के हमले के तरीक़े के लिए भारत को तैयारी करनी होगी। वैसे तो हवाई अड्डा क्षेत्र में ऐसे सेंसर (जाँच यंत्र) और यंत्र हैं, जो तत्काल अवांछित गतिविधि की जानकारी दे देते हैं या अलर्ट कर देते हैं; लेकिन ड्रोन का पकड़ में न आना भी अपने आप में हैरानी की बात है।
भारत की बात करें, तो यह तथ्य सामने आया है कि ड्रोन का इस्तेमाल नक्सली भी कर रहे हैं। अब तक हथियारों, गोला-बारूद और मादक पदार्थों को लाने के लिए ही ड्रोन का इस्तेमाल होता था; लेकिन जम्मू हवाई अड्डे की घटना ज़ाहिर करती है कि इनका इस्तेमाल बम गिराने के लिए किया जाने लगा है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। ज़ाहिर है देश की सुरक्षा और कड़ी करने के अलावा इसकी रणनीति में बदलाव की सख़्त ज़रूरत महसूस होने लगी है। सुरक्षा जानकारी यह भी बताती है कि भारत के ख़िलाफ़ जासूसी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल पाकिस्तान सीमा से लेकर नेपाल और चीन की सीमा पर भी हो रहा है। हाल के महीनों में सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी जानकारी साझा की है।
याद रहे जून के आख़िर में जम्मू में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर रात के समय दो ड्रोन से विस्फोटक गिराये गये थे। इस घटना में दो जवान मामूली रूप से घायल हो गये थे। देश में किसी ऐसे महत्त्वपूर्ण स्टेशन पर ड्रोन से किया गया यह पहला हमला है। ड्रोन से गिराये गये विस्फोटक का पहला विस्फोट रात क़रीब 1:40 बजे के आसपास हुआ; जबकि दूसरा विस्फोट क़रीब छ: मिनट बाद हुआ।

ढाई साल में दिखे 314 ड्रोन


‘तहलका’ के जुटाये आँकड़ों के मुताबिक, भारत में ड्रोन से जासूसी की गतिविधियाँ पिछले क़रीब 23 महीनों में, जबसे जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 निरस्त को निरस्त किया गया है; काफ़ी बढ़ी हैं। हालाँकि भारत में पहली बार ड्रोन गतिविधि सन् 2013 में संज्ञान में आयी थी। जम्मू के अलावा पंजाब और गुजरात भी ड्रोन गतिविधियों का केंद्र रहा है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, जम्मू से लेकर गुजरात तक पिछले 12 महीनों में ही 103 बार (10 जुलाई, 2021 तक) संदिग्ध ड्रोन गतिविधि देखी गयी हैं। सुरक्षा संस्थाओं ने इस साल जुलाई तक ड्रोन गतिविधियों को लेकर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक ख़ासतौर पर जम्मू और पंजाब की पश्चिमी सीमा पर 2019 में 167, पिछले साल 77 और इस साल अब तक क़रीब 70 दफ़ा ड्रोन देखे गये हैं। अब यह बड़ा सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर ड्रोन गतिविधि उजागर होने के बावजूद इसे रोकने या विफल करने के लिए क्या किया गया?

विदेशी हाथ!
अभी जाँच में यह साफ़ नहीं है कि ड्रोन के हमले में क्या हुआ? लेकिन यह संकेत मिल रहे हैं कि इसके पीछे पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई का हाथ है। अभी तक यह भी माना जा रहा था कि यह किसी आतंकी संगठन का काम है; लेकिन जाँच अधिकारी इस सम्भावना को नकार नहीं रहे कि इस घटना के पीछे सि$र्फ आईएसआई भी हो सकती है। इस हमले की जाँच केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही एनआईए को सौंप चुका है और यह काफ़ी आगे बढ़ चुकी है। उधर इस घटना के आसपास बिहार-नेपाल सीमा पर आठ ड्रोन मिलने की घटना भी गम्भीर है। एसएसबी के जवानों ने पूर्वी चंपारण ज़िले में नेपाल सीमा पर एक कार से आठ ड्रोन और इतने ही कैमरे ज़ब्त किये थे। कार सवार तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। एक और घटना में सेना के जवानों ने रत्नुचक-कालूचक स्टेशन के ऊपर उड़ रहे दो ड्रोन गोलीबारी करके नष्ट कर दिये। इसे भी सैन्य प्रतिष्ठान पर हमले की एक कोशिश बताया गया है। अब जम्मू-कश्मीर में ड्रोन हमलों की आशंका के बीच प्रमुख केंद्रों के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है।

मोदी का चुनावी मंत्रिमंडल

The President, Shri Ram Nath Kovind, the Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu, the Prime Minister, Shri Narendra Modi and other members of Council of Ministers at the Swearing-in Ceremony, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on July 07, 2021.

 2024 के लोकसभा चुनाव में युवा टीम के साथ मैदान में होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
 12 बड़े मंत्रियों की छुट्टी कर 43 नये मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर दिया सन्देश

साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए देश के फिर से चुनावी मोड में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अब सिर्फ़ तीन साल बाक़ी हैं। अगले बड़े चुनावों को देखते हुए, हाल में प्रधानमंत्री ने पहले अपने 52 मंत्रियों के प्रदर्शन की महीने भर समीक्षा की उसके बाद 12 बड़े मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कुछ पुराने और बाक़ी नये सहित कुल 43 मंत्रियों को विस्तार में जगह देकर अपना जम्बो क़ुनबा 79 मंत्रियों का कर लिया है। इनमें काफ़ी युवा मंत्री हैं, जिससे मंत्रिमंडल की औसत आयु भी 58 साल के आसपास हो गयी; जो पहले 61 साल थी। इसमें जातिगत और राज्यवार समीकरणों का काफ़ी ख़याल रखा गया है, जिसका कारण अगले साल होने वाले पाँच राज्यों (पहले गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश) के चुनाव हैं। इसके बाद इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। बता दें कि गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखण्ड विधानसभाओं का कार्यकाल मार्च, 2022 में समाप्त होगा। वहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल मई, 2022 तक और गुजरात तथा मणिपुर का विधानसभा कार्यकाल दिसंबर, 2022 तक चलेगा।
ज़ाहिर है 12 मंत्रियों को बाहर कर नये मंत्रियों को सन्देश दिया गया है कि मंत्रियों काम करना होगा या शायद उनकी नाकामी से बचाव का रास्ता निकाला गया है। मोदी प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के 7वें वर्ष में हैं और उन्होंने अभी-अभी कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चुनौती का सामना किया है, जिसमें अस्पतालों में बिस्तरों, ऑक्सीजन, दवाओं और वैक्सीन की भीषण कमी के कारण हज़ारों लोगों की जान चली गयी। यही नहीं, महामारी से अर्थ-व्यवस्था तबाह हुई, मोदी सरकार के तीन विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का आन्दोलन जारी है; जबकि चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर तनातनी अभी भी बनी हुई है।

मुद्दों से अवगत प्रधानमंत्री ने सबसे पहले जून और जुलाई के शुरू में एक समीक्षा अभ्यास किया और अपने 52 मंत्रियों से मुलाक़ात की। एकमात्र मंत्री जो प्रधानमंत्री से नहीं मिल सके, वह रमेश पोखरियाल निशंक थे, क्योंकि तब वह कोरोना संक्रमण से पीडि़त थे। प्रधानमंत्री ने अपने 52 मंत्रियों को 10 उप-समूहों में विभाजित किया और प्रत्येक समूह के साथ हर दिन 6-7 घंटे तक बैठकें कीं, जहाँ प्रत्येक मंत्री ने 2019 में सौंपे गये कार्यों और दो वर्षों के दौरान हासिल किये गये लक्ष्यों का ब्यौरा दिया। जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों को किया था कि उनमें से प्रत्येक को कम-से-कम दो से तीन परियोजनाओं के साथ सामने आना होगा, जिन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लोगों के सामने पेश किया जा सकता हो। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मंत्रालयों को अगस्त, 2023 तक सभी परियोजनाओं को पूरा करना होगा; क्योंकि 2024 एक चुनावी वर्ष होगा।
विशेषज्ञ बताते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भारत के फिर से चुनावी मोड में आने से पहले मोदी के पास दो साल से अधिक का समय है। क्या वह विनिर्माण को बढ़ावा देने, मुद्रास्फीति पर लग़ाम कसने और बेरोज़गारों को रोज़गार प्रदान करने के लिए आर्थिक एजेंडे पर निर्भर करेंगे। इसमें से अधिकांश चीज़ें कोरोना वायरस की एक और लहर की सम्भावना को कम करने और इस वित्तीय वर्ष में अर्थ-व्यवस्था में नुक़सान की सम्भावना को कम करने और टीकाकरण में तेज़ी लाकर महामारी को नियंत्रित करने पर निर्भर करती हैं। ये चीज़ें 2024 के चुनावों का सामना करने के लिए मोदी को छवि में बदलाव का आधार दे सकती हैं।
निश्चित ही आगे एक ऊबड़-खाबड़ रास्ता है। बेशक, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाक़ात के बाद कहा कि विपक्ष की किसी भी रणनीति के बावजूद, मोदी 2024 में फिर से प्रधानमंत्री होंगे; क्योंकि वह लोगों के दिलों पर राज करते हैं। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनका सपना ‘बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट’ 2023 तक पूरा हो जाए। इसी तरह विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर प्रकाश डाला, जिसकी मेजबानी भारत पहली बार 2023 में करेगा। राम मंदिर निर्माण को भी लम्बे समय से लम्बित सभी मुद्दों को हल करने के एक प्रमुख उदाहरण के रूप में दिखाया जाएगा।
समीक्षा में कुछ मंत्रालयों, विशेष रूप से दूरसंचार और शिक्षा, के ख़राब प्रदर्शन की बात सामने आयी थी। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने वहाँ बदलाव किया है। एक विचार था कि भविष्य के नेताओं को विकसित करने के लिए युवा चेहरों को लाया जाए। इसे भी मूर्त रूप विस्तार में दिया गया है। मंत्रिमंडल विस्तार निश्चित ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री का युद्ध टीम गठित करना था। वास्तव में मोदी-2.0 ने तीन तलाक़ पर क़ानून के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया देखी। इसके बाद जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को आश्चर्यजनक रूप से हटाना और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना और फिर नागरिकता संशोधन विधेयक लाना भी राजनीतिक प्रतिक्रिया के लिहाज़ से बड़ी मुद्दे बने। हालाँकि आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के सरकार के प्रयासों का उलटा असर हुआ, कृषि सुधारों ने किसानों को सड़कों पर ला दिया, श्रम सुधारों ने भी उलटा सरकार पर ही हमला किया और 2019 का बहु-प्रचारित नागरिकता संशोधन अधिनियम अभी भी नियमों के बनने की प्रतीक्षा कर रहा है। साथ ही भारत को विश्व फार्मेसी घोषित करने के कुछ दिनों के भीतर सरकार दुनिया को टीके और चिकित्सा उपकरणों के स्रोत के लिए परिमार्जन कर रही थी; क्योंकि कमी के कारण पूरी स्वास्थ्य प्रणाली लडख़ड़ा रही थी। पश्चिम बंगाल के चुनावों में भाजपा की हार ने मोदी और शाह की अजेयता को झकझोर कर रख दिया है। चुनाव परिणाम ने 2024 के आम चुनाव में भाजपा से आगे निकलने की विपक्षी उम्मीदें जगा दी हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा में तैरती लाशों की कहानियों और इससे उपजे ग़ुस्से ने सरकार को राजनीतिक असुरक्षा से भर दिया।
मोदी-ढ्ढढ्ढ की स्थिति अचानक यूपीए-ढ्ढढ्ढ जैसी लग रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया था। भाजपा के लिए चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं, ख़ासकर उत्तर प्रदेश में जहाँ अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी द्वारा बनाये गये रास्ते और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में हालिया उलटफेर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कोरोना महामारी से निपटने के तरीक़े से लगता है कि भाजपा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करके मुख्य चुनावी लाभ की उम्मीद कर रही थी।
प्रधानमंत्री ने आत्मानिभर भारत पर ज़ोर दिया है, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे अक्षम घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए उच्च शुल्क बाधाएँ खड़ी न हों। यह सिर्फ़ भारत को निर्यात बाज़ार में कम प्रतिस्पर्धी बनाएगा। साल 2024 में भाजपा को सत्ता में बनाये रखने के लिए मोदी को महामारी से बुरी तरह प्रभावित लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा रोज़गार और आर्थिक विकास पर भी काम करना होगा। इस साल (2021 में) उन्हें यह प्रदर्शित करना होगा कि उन्होंने महामारी के कारण होने वाली असमानताओं को कम करते हुए भारतीय अर्थ-व्यवस्था को मज़बूती से ठीक होने की राह पर रखा है।
भारतीय अर्थ-व्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है और कम-से-कम 2024 में अगले आम चुनावों तक मज़बूत आर्थिक सुधार की किसी भी सम्भावना के लिए बहुत कम उम्मीद की जा रही है। यहाँ तक कि भारत के आर्थिक प्रदर्शन से कहीं पीछे चलने वाली दक्षिण एशिया की अधिकांश क्षेत्रीय अर्थ-व्यवस्थाएँ, अब आगे चल रही हैं; ख़ासकर बांग्लादेश की अर्थ-व्यवस्था। महामारी से पहले 2019 के लिए भारत की युवा बेरोज़गारी दर 23 फ़ीसदी को छू गयी थी। 2020 में इसका वार्षिक जीडीपी प्रदर्शन -8.0 फ़ीसदी तक गिर गया, जो सभी विकासशील देशों में सबसे ख़राब है। जबकि 2020 में बांग्लादेश 3.8 फ़ीसदी की दर से बढ़ा। सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक रहने वाले देश भारत के लिए ये आँकड़े हैरान और चिन्तित करने हैं।
ख़ैर, प्रधानमंत्री की 52 मंत्रियों के साथ हुई बैठकों का लब्बोलुआब यह था कि 2024 के आम चुनाव में मोदी की युग पुरुष और विकास पुरुष के रूप में छवि उभारी जाए। अब विस्तार के बाद नये मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में मंत्रियों को लक्ष्य तय करने और उन्हें समय पर पूरा करने का आदेश दिया गया है। इसका उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लोगों को मोदी सरकार के काम को दिखाना है। प्रधानमंत्री का ज़ोर सभी मंत्रालयों पर अगस्त 2023 तक सभी परियोजनाओं को पूरा करने का है; क्योंकि 2024 एक चुनावी वर्ष होगा। इससे मोदी सरकार की 2024 के आम चुनाव के लिए पूरी तैयारी की तत्परता उजागर होती है, ताकि विपक्ष पर बढ़त बनायी जा सके। हालाँकि पश्चिम बंगाल चुनावों में भाजपा की हार, महामारी से निपटने पर सवालिया निशान, देश में देखी जा रही आर्थिक गिरावट और देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव, 2024 के आम चुनाव की भाजपा की यात्रा को कठिन बना सकते हैं। फ़िलहाल सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि नयी मंत्रिमंडलीय टीम 2024 के आम चुनाव के लिए मोदी की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाती है?

राजनीतिक लक्ष्य साधने की क़वायद
मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार अगले साल के पाँच विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनावों और ख़ासकर लोकसभा चुनाव को नज़र में रखकर किया गया है। मोदी ने अपने नये मंत्रिमंडल में जिस तरह पाँच चुनावी राज्यों के जातिगत लक्ष्य साधने की कोशिश की है, उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि पश्चिम बंगाल में बुरी हार के बाद भाजपा नेतृत्व कितना बेचैन है। लिहाज़ा भाजपा का यह दावा मज़ाक़ ही लगता है कि यह विस्तार सरकार की दक्षता को और बढ़ाने के लिए है। यह शुद्ध रूप से उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कुछ ख़ास वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर राजनीतिक लक्ष्य साधने की क़वायद से ज़्यादा कुछ नहीं है। उलटे एक साथ 12 मंत्रियों को सरकार से बाहर करने से यह सन्देश जनता में गया है कि पिछले दो साल से यह अप्रभावी मंत्री बोझ बनकर सरकार में थे। इन मंत्रियों में रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन, प्रकाश जावेड़कर, सन्तोष गंगवार, सदानंद गौड़ा जैसे बड़े नाम शामिल हैं। वैसे तो मोदी सरकार की कई विफलताएँ भी हैं। फिर भी मोदी ने युवा चेहरे लेकर जनता को लुभाने का प्रयास किया है। लेकिन इसके लिए सरकार को उन्हें रोज़गार भी देना होगा। दलित-पिछड़ों पर मोदी ने मेहरबानी बरती है, जो यह संकेत करती है कि भाजपा को इस वर्ग की नाराज़गी का डर है। मोदी मंत्रिमंडल में अब 79 हो गयी है। पहले इनकी संख्या 52 थी।